Sunday 7 October 2018

8 अक्टूबर 2018 को पितृपक्ष समापन, तर्पण करने से शुभ हो जाती हैं हाथ की रेखाएं - तिथि नहीं याद, तो इस तिथि को करें पितरों का श्राद्ध

पितृपक्ष में देव और पितरों का तर्पण करने का काफी महत्व है। तर्पण से वंश वृद्धि के साथ-साथ जन्मकुंडली के पितृदोष का भी निवारण होता है। मान्यता है कि जिस हाथ से देव-पितर का तर्पण होता है उस हाथ की रेखाएं भी शुभ हो जाती हैं। ज्योतिषाचार्य व श्रीमन् नारायण सेवा संस्थान, पटना के प्रमुख विपेंद्र झा माधव ने धर्मशास्त्रों के हवाले से बताया कि आश्विन का महीना बारह महीनों में उत्तम महीना होता है।

इस मास का पहला पक्ष अर्थात् कृष्ण पक्ष पितृपक्ष होता है और दूसरा पक्ष देवी पक्ष होता है। पितृपक्ष में इस मंत्र से देव व पितरों का तर्पण करना चाहिए..ऊ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य, नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:। इससे आयु, आरोग्यता, यश, धन की वृद्धि होती है। वैसे तो हर दिन तर्पण करने का विधान है किंतु ऐसा संभव नहीं होने पर माता-पिता की पुण्यतिथि पर, अमावास्या को तथा पितृपक्ष में तर्पण एवं श्राद्ध करना चाहिए। श्राद्ध माता-पिता की मृत्यु की तिथि को करना चाहिए। यदि सही तिथि याद नहीं हो तो अमावास्या को पार्वण श्राद्ध किया जा सकता है। माता-पिता की बरसी के दिन वार्षिक एकोदिष्ट श्राद्ध करना चाहिए।

अमावास्या के दिन पितर वायु रूप धारण कर गृह के द्वार पर अपने वंशज के द्वारा श्राद्ध एवं तर्पण की अभिलाषा से खड़े रहते हैं तथा सूर्यास्त होने पर कुपित होकर चले जाते हैं। अत: तर्पण एवं श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। तर्पण कुश, जल एवं तिल से करना चाहिए तथा श्राद्ध अन्न ,मधु ,तिल, गोघृत आदि से किया जाता है। श्राद्ध के बाद सदाचारी ब्राह्मण को भोजन कराने का विधान है। शास्त्र कहता है कि परलोक गत पितर ब्राह्मण भोजन के समय वायु रूप में ब्राह्मण के शरीर में प्रविष्ट होकर उस भोजन से तृप्त होते हैं। देश में बिहार के गया क्षेत्र में ,राजस्थान के पुष्कर में तथा उत्तराखंड के ब्रह्मकपाली में पितरों के श्राद्ध का खास महत्व है। यहां पिंडदान करने से पितरों को मुक्ति मिलती है।

श्राद्ध करने के लिए तर्पण में दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल से पितरों को तृप्त किया जाता है। पितरों के श्राद्ध के दिन गाय और कौए के लिए भी भोजन निकालना चाहिए। जल का तर्पण करने से पितरों की प्यास बुझती है।

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आचार्य विकास मल्होत्रा
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Monday 1 October 2018

श्री महालक्ष्मी व्रत 2018 - व्रत और पूजा कैसे करें - देवी महालक्ष्मी की करें पूजा, बोलें लक्ष्मी जी के 8 नाम, बनी रहेगी सुख-समृद्धि


 
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02nd October 2018
 
श्री महालक्ष्मी व्रत का प्रारम्भ भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन से होता है. वर्ष 2018 में यह व्रत होगा 02nd अक्टूबर 2018. इस व्रत में लक्ष्मी जी का पूजन किया जाता है. 

श्री महालक्ष्मी व्रत पूजन | Sri Mahalakshmi Vrat Pujan

सबसे पहले प्रात:काल में स्नान आदि कार्यो से निवृत होकर, व्रत का संकल्प लिया जाता है. व्रत का संकल्प लेते समय निम्न मंत्र का उच्चारण किया जाता है.
करिष्यsहं महालक्ष्मि व्रतमें त्वत्परायणा
तदविध्नेन में यातु समप्तिं स्वत्प्रसादत: ।।
हाथ की कलाई में बना हुआ डोरा बांधा जाता है, जिसमें 16 गांठे लगी होनी चाहिए. पूजन सामग्री में चन्दन, ताल, पत्र, पुष्प माला, अक्षत, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल तथा नाना प्रकार के भोग रखे जाते है. नये सूत 16-16 की संख्या में 16  बार रखा जाता है. इसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण किया जाता है.
व्रत पूरा हो जाने पर वस्त्र से एक मंडप बनाया जाता है. उसमें लक्ष्मी जी की प्रतिमा रखी जाती है. श्री लक्ष्मी को पंचामृत से स्नान कराया जाता है और फिर उसका सोलह प्रकार से पूजन किया जाता है. इसके पश्चात ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है और दान- दक्षिणा दी जाती है.
इसके बाद चार ब्राह्माण और 16 ब्राह्माणियों को भोजन करना चाहिए. इस प्रकार यह व्रत पूरा होता है. इस प्रकार जो इस व्रत को करता है उसे अष्ट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है. सोलहवें दिन इस व्रत का उद्धयापन किया जाता है.  जो व्यक्ति किसी कारण से इस व्रत को 16 दिनों तक न कर पायें, वह तीन दिन तक भी इस व्रत को कर सकता है. व्रत के तीन दोनों में प्रथम दिन, व्रत का आंठवा दिन एवं व्रत के सोलहवें दिन का प्रयोग किया जा सकता है. इस व्रत को लगातार सोलह वर्षों तक करने से विशेष शुभ फल प्राप्त होते हैं. इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए. केवल फल, दूध, मिठाई का सेवन किया जा सकता है. आप यह व्रत भी अष्टमी पर कर सकते हैं

महालक्ष्मी व्रत कथा | Mahalakshmi Vrat Katha

प्राचीन समय की बात है, कि एक बार एक गांव में एक गरीब ब्राह्माण रहता था. वह ब्राह्माण नियमित रुप से श्री विष्णु का पूजन किया करता था. उसकी पूजा-भक्ति से प्रसन्न होकर उसे भगवान श्री विष्णु ने दर्शन दिये़. और ब्राह्माण से अपनी मनोकामना मांगने के लिये कहा, ब्राह्माण ने लक्ष्मी जी का निवास अपने घर में होने की इच्छा जाहिर की. यह सुनकर श्री विष्णु जी ने लक्ष्मी जी की प्राप्ति का मार्ग ब्राह्माण को बता दिया, मंदिर के सामने एक स्त्री आती है,जो यहां आकर उपले थापती है, तुम उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना. वह स्त्री ही देवी लक्ष्मी है.
देवी लक्ष्मी जी के तुम्हारे घर आने के बार तुम्हारा घर धन और धान्य से भर जायेगा. यह कहकर श्री विष्णु जी चले गये. अगले दिन वह सुबह चार बचए ही वह मंदिर के सामने बैठ गया. लक्ष्मी जी उपले थापने के लिये आईं, तो ब्राह्माण ने उनसे अपने घर आने का निवेदन किया. ब्राह्माण की बात सुनकर लक्ष्मी जी समझ गई, कि यह सब विष्णु जी के कहने से हुआ है. लक्ष्मी जी ने ब्राह्माण से कहा की तुम महालक्ष्मी व्रत करो, 16 दिनों तक व्रत करने और सोलहवें दिन रात्रि को चन्द्रमा को अर्ध्य देने से तुम्हारा मनोरथ पूरा होगा.
ब्राह्माण ने देवी के कहे अनुसार व्रत और पूजन किया और देवी को उत्तर दिशा की ओर मुंह करके पुकारा, लक्ष्मी जी ने अपना वचन पूरा किया. उस दिन से यह व्रत इस दिन, उपरोक्त विधि से पूरी श्रद्वा से किया जाता है.

इस विधि से करें देवी लक्ष्मी की पूजा

1.      मंगलवार की शाम को घर के किसी हिस्से को अच्छे से साफ करें। वहां एक पटिया (चौकी) की स्थापना करें और उस पर लाल कपड़ा बिछाएं।

- अब कपड़े पर थोड़े से चावल रखें और चावल के ऊपर पानी से भरा कलश रखें। कलश के पास हल्दी से कमल बनाकर उस पर माता लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें।

- मिट्टी का हाथी बाजार से लाकर या घर में बना कर उसे सजाएं। नया खरीदा सोना हाथी पर रखने से पूजा का विशेष लाभ मिलता है। इस अवसर पर खरीदा गया सोना आठ गुना बढ़ता है

- माता लक्ष्मी की मूर्ति के सामने श्रीयंत्र भी रखें। कमल के फूल से पूजा करें। सोने-चांदी के सिक्के, मिठाई फल भी रखें। 

- इसके बाद माता लक्ष्मी के आठ रूपों की इन मंत्रों के साथ कुंकुम, चावल और फूल चढ़ाते हुए पूजा करें-

- ऊं आद्यलक्ष्म्यै नम:
- ऊं विद्यालक्ष्म्यै नम:
- ऊं सौभाग्यलक्ष्म्यै नम:
- ऊं अमृतलक्ष्म्यै नम:
- ऊं कामलक्ष्म्यै नम:
- ऊं सत्यलक्ष्म्यै नम:
- ऊं भोगलक्ष्म्यै नम:
- ऊं योगलक्ष्म्यै नम:

- इसके बाद गाय के शुद्ध घी के दीपक से मां लक्ष्मी की आरती करें। इस प्रकार विधि-विधान से पूजा करने पर मां महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं।

2.      ये उपाय भी करें

पूजा करते समय 5 चीजें चढ़ाने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और भक्त की खराब किस्मत भी चमका सकती हैं। ये 5 चीजें हैं
1. खीर
2. कमल का फूल
3. कौड़ी
4. दक्षिणावर्ती शंख
5. चांदी का सिक्का
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आचार्य विकास मल्होत्रा
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