Friday 8 February 2019

Basant Panchami 2019: 9 या 10 फरवरी, जानें- किस दिन मनाया जाएगा बसंत पंचमी का त्योहार


इस बार बसंत पंचमी की तिथि को लेकर काफी उलझन बनी हुई है. आइए जानते हैं बसंत पंचमी का त्योहार किस दिन मनाया जााएगा.
बसंत पंचमी प्रत्येक वर्ष माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है. ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन से सर्दी के महीने का अंत हो जाता है और ऋतुराज वसंत का आगमन होता है. इस बार बसंत पंचमी की तिथि को लेकर लोगों के बीच काफी उलझन बनी हुई है. बता दें,
इस बार बसंत पंचमी का त्योहार 2 दिन मनाया जाएगा. देश के कुछ हिस्सों में यह त्योहार 9 फरवरी के दिन मनाया जाएगा तो कुछ जगहों पर 10 फरवरी के दिन.
9 फरवरी को इन जगहों पर मनाया जाएगा बसंत पंचमी का त्योहार-
बसंत पंचमी का त्योहार 9 फरवरी शनिवार के दिन दिल्ली, पंजाब, जम्मू, हिमाचल, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिमी मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, पश्चिमी महाराष्ट्र और कर्नाटक में मनाया जाएगा.
10 फरवरी शनिवार को कहां मनेगी बसंत पंचमी?
10 फरवरी के दिन बसंत पंचमी का त्योहार पूर्वी उत्तर प्रदेश, पूर्वी मध्य प्रदेश, बिहार, बंगाल, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पूर्वी महाराष्ट्र में मनाया जाएगा.
बसंत पंचमी का दिन मां सरस्वती की पूजा का विशेष दिन माना जाता है. मां सरस्वती ही बुद्धि और विद्या की देवी हैं. बसंत पंचमी को हिंदू मान्यताओं के अनुसार एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है.
बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त
सरस्वती पूजा मुहूर्त: सुबह 7.15 से 12.52 बजे तक.
पंचमी तिथि का आरंभ: 9 फरवरी 2019 को 12.25 बजे से प्रारंभ होगा.
पंचमी तिथि समाप्त: 10 फरवरी 2019, रविवार को 14.08 बजे होगी.
यूं तो बसंत पंचमी के दिन किसी भी समय मां सरस्वती की पूजा की जा सकती है. लेकिन पूर्वान्ह का समय पूजा के लिए उपयुक्त माना जाता है. सभी शिक्षा केंद्रों, विद्यालयों में पूर्वान्ह के समय ही सरस्वती पूजा कर माता सरस्वती का आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है.
बसंत पंचमी का सामाजिक महत्व-
भारतीय पंचांग में 6 ऋतुएं होती हैं. इनमें से बसंत को 'ऋतुओं का राजा' कहा जाता है. बसंत फूलों के खिलने और नई फसल के आने का त्योहार है. ऋतुराज बसंत का बहुत महत्व है. ठंड के बाद प्रकृति की छटा देखते ही बनती है. इस मौसम में खेतों में सरसों की फसल पीले फूलों के साथ, आमों के पेड़ों पर आए फूल, चारों तरफ हरियाली और गुलाबी ठंड मौसम को और भी खुशनुमा बना देती है.
यदि सेहत की दृष्टि से देखा जाए तो यह मौसम बहुत अच्छा होता है. इंसानों के साथ पशु-पक्षियों में नई चेतना का संचार होता है. यदि हिंदू मान्यताओं के मुताबिक देखा जाए तो इस दिन देवी सरस्वती का जन्म हुआ था. यही कारण है कि यह त्योहार हिन्दुओं के लिए बहुत खास है. इस त्योहार पर पवित्र नदियों में लोग स्नान आदि करते हैं. इसके साथ ही बसंत मेले आदि का भी आयोजन किया जाता है.
बसंत पंचमी का पौराणिक महत्व-
सृष्टि की रचना करते समय ब्रह्माजी ने मनुष्य और जीव-जंतु की रचना की है. इसी बीच उन्हें महसूस हुआ कि कुछ कमी रह गई है, जिसके कारण सभी जगह सन्नाटा छाया रहता है. इस पर ब्रह्माजी ने अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे 4 हाथों वाली एक सुंदर स्त्री प्रकट हुई, जिसके एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में वरमुद्रा तथा अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी.
ब्रह्माजी ने वीणावादन का अनुरोध किया. इस पर देवी ने वीणा का मधुर नाद किया जिस पर संसार के समस्त जीव-जंतुओं में वाणी व जलधारा कोलाहल करने लगी, हवा सरसराहट करने लगी. तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी 'सरस्वती' का नाम दिया. मां सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादिनी और वाग्देवी आदि कई नामों से भी जाना जाता है. ब्रह्माजी ने माता सरस्वती की उत्पत्ति वसंत पंचमी के दिन की थी. यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष बसंत पंचमी के दिन ही देवी सरस्वती का जन्मदिन मानकर पूजा-अर्चना की जाती है.
ऐसे पूजा कर मां सरस्वती को करें प्रसन्न
सुबह नहाकर मां सरस्वती को पीले फूल अर्पित करें।
पूजा के समय मां सरस्वती की वंदना करें।
पूजा स्थान पर वाद्य यंत्र और किताबें रखें, और बच्चों को पूजा में शामिल करें।
इस दिन पीले कपड़े पहनना शुभ माना जाता है, पूजा के वक्त या फिर पूरे दिन पीले रंग के वस्त्र धारण करें।
बच्चों को पुस्तकें तोहफे में दें।
पीले चावल या पीले रंग का भोजन करें।
HAPPY BASANT PANCHAMI
मां सरस्वती पूजा का ये प्यारा त्यौहार,
जीवन में लायेगा ख़ुशी अपार,
सरस्वती विराजे आपके दवार,
शुभ कामना हमारी करे स्वीकार |
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Acharya Vikas Malhotra
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Sunday 3 February 2019

Mauni Amavasya 2019: मौनी अमावस्या पर बन रहा है दुर्लभ संयोग - करें यह महाउपाय और पायें महावरदान


Day of Mauni Amavasya - 04th February, 2019 (Monday)

वैसे तो अमावस्या प्रत्येक मास में पड़ती है, परन्तु माघ मास की अमावस्या का विशेष महत्व है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि ब्रहमा जी ने इसी दिन मनु और सतरूपा को उत्पन्न कर सृष्टि का निर्माण कार्य आरम्भ किया था। माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या, मौनी अमावस्या के नाम से प्रसिद्ध है। इस पवित्र तिथि को मौन या चुपकर रहकर अथवा मुनियों के समान आचरण पूर्वक स्नान-दान करने का विशेष महत्व है। इसी कारण इसे मौनी अमावस्या कहा जाता है। मौनी अमावस्या के दिन सोमवार का योग होने से इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है। अमावस्या इस मास का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। पुराणों में मौनी अमावस्या के दिन त्रिवेणी स्नान की जो महिमा वर्णित की गई है, वह स्वर्ग एंव मोक्ष को देने वाली है।

27 वर्ष बाद मौनी अमावस्या पर फिर से वही योग पड़ रहे हैं जो वर्ष 1992 में पड़े थे। अनेक योगों के पड़ने से पर्व का महत्व और बढ़ गया है। रविवार से तीर्थ यात्रियों का हरिद्वार आना शुरू हो जाएगा। वर्ष 1992 में तीन फरवरी के दिन मौनी अमावस्या सोमवार को पड़ने के कारण सोमवती हो गई थी। संयोग से उस दिन हरिद्वार अर्द्धकुंभ का प्रमुख स्नान भी था। इसी प्रकार इस बार मौनी अमावस्या चार फरवरी सोमवार को पड़कर सोमवती हुई है और प्रयाग अर्द्धकुंभ का मुख्य स्नान इसी दिन पड़ रहा है। संयोग यह भी है कि 27 वर्ष पूर्व जो सिद्धी योग था वह योग इस बार सिद्धी के साथ साथ महोदय योग के रूप में भी आ रहा है। सोमवती अमावस्या के दिन चंद्रमा का श्रवण नक्षत्र विद्यमान रहेगा। खास बात यह है कि भगवान सूर्य का प्रवेश इसी नक्षत्र में हो रहा है। सूर्य इस समय मकर राशि में मौजूद हैं। सूर्य के मकर राशि में रहते हुए मौनी अमावस्या का पड़ना अपने आप में एक महायोग है।

बारह महीनों में से चार महीने सबसे पवित्र माने गए हैं। इन चार महीनों में भी माघ का पर्व सबसे पवित्र है। यही कारण है कि इस बार सोमवती अमावस्या के स्नान का पर्व पूर्ण पर्वकाल लेकर आया है। प्रात:काल सूर्योदय से लेकर सायंकाल सूर्यास्त तक पूर्ण मुहूर्त मौजूद रहेगा। इस कारण श्रद्धालु किसी भी समय गंगा में डुबकी लगा सकते हैं।
इस बार की मौनी अमावस्या दरिद्र योग, ग्रहण योग, केमुद्रम योग और शक्त योग लेकर भी आई है। इसका अर्थ है कि जिनकी कुंडली में ये योग हों, गंगा स्नान करने से उनका दुर्योग मिट जाएगा। यह पर्व व्यवसाय, संतान और भौतिक सुख भी लेकर आ रहा है। गंगा आदि पवित्र नदियों में एक भी गोता लगाने से जन्मों के पाप मिट जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस दिन मौन रहकर तिल, दूध और गुड़ तिल से बनी वस्तुओं का दान करना चाहिए। इस दिन मौन व्रत का विशेष महत्व है। यह पर्व उत्तरायण में पड़ने से और भी अधिक महत्वपूर्ण हो चला है।

मौनी अमावस्या का महाउपाय

मौनी अमावस्या को स्नान करके अपने नित्यकर्म से निवृत्त होने के बाद तिल, तिल के लड्डू, तिल का तेल, आंवला और वस्त्र आदि का दान करना चाहिए। आज के दिन आप एक दिन, एक सप्ताह, एक महीना तथा एक वर्ष का मौन व्रत रखकर आप शररीरिक, वाचिक व मानसकि कष्टों से मुक्ति पा सकते है।

ऐसा कहा जाता है कि मौनी आमवस्या के दिन गंगा जल अमृत में बदल जाता है। इस दिन अगर आप व्रत रख रहे हैं तो प्रात उठ कर सबसे पहले स्नान करें और फिर भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करें। इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है। मोनी अमावस्या के दिन 108 बार तुलसी परिक्रमा करें। सूर्य को जल दें। अगर आप गंगा में स्नान नहीं कर सकते तोह पानी मैं गंगा जल मिलाकर स्नान करें।

जिन जातकों का बुघ ग्रह पीडि़त या अशुभ फल दे रहा है, वह लोग मौनी अमावस्या के दिन मौन व्रत रहकर तुलसी के पेड़ का पूजन करें तथा प्रातःकाल तुलसी पत्तियों का सेवन करें। इसी दिन किन्नरों को हरी चूडि़यां व हरे रंग की साड़ी का दान करने से बुध ग्रह शुभ फल देने लगता है।

जिन लोगों का चन्द्र ग्रह अशुभ फल दे रहा है, वह लोग मौनी अमावस्या के दिन मौन व्रत रहें तथा खीर से भोलेनाथ का भोग लगाकर गरीबों में वितरण करें।

पितरों के नाम पर कुछ दान अवश्य दें।

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