Saturday 10 February 2018

महाशिवरात्रि - महाशिवरात्रि 13 फरवरी या 14 फरवरी 2018 को? यह है सही तिथि और मुहूर्त



शिवभक्तों का सबसे बड़ा त्योहार महाशिवरात्रि माना जाता है। इस त्योहार का भक्तगण पूरे साल इंतजार करते हैं और महाशिवरात्रि के दिन सुबह से ही शिव मंदिरों में जुटने लगते हैं। शिवभक्तों के लिए इस साल बड़ी उलझन की स्थिति बनी हुई है कि महाशिवरात्रि का त्योहार किस दिन मनाया जाएगा।  ऐसे में लोग दुविधा में हैं कि महाशिवरात्रि 13 फरवरी को मनेगी या 14 फरवरी को। ऐसी स्थिति इसलिए बनी हुई है क्योंकि महाशिवरात्रि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है।
13 फरवरी को पूरे दिन त्रयोदशी तिथि है और मध्यरात्रि में 11 बजकर 36 मिनट से चतुर्दशी तिथि लग रही है। जबकि 14 फरवरी को पूरे दिन और रात 12 बजकर 48 मिनट तक चतुर्दशी तिथि है। ऐसे में लोग दुविधा में हैं कि महाशिवरात्रि 13 फरवरी को मनेगी या 14 फरवरी को। इस प्रश्न का उत्तर धर्मसिंधु नामक ग्रंथ में दिया गया है। इसमें कहा गया हैपरेद्युर्निशीथैकदेश-व्याप्तौ पूर्वेद्युः सम्पूर्णतद्व्याप्तौ पूर्वैव।।यानी चतुर्दशी तिथि दूसरे दिन निशीथ काल में कुछ समय के लिए हो और पहले दिन सम्पूर्ण भाग में हो तो पहले दिन ही यह व्रत करना चाहिए। 
निशीथ काल रात के मध्य भाग के समय को कहा जाता है जो 13 तारीख को कई शहरों में अधिक समय तक है। ऐसे में शास्त्रानुसार उज्जैन, दिल्ली, मुंबई, कर्नाटक, तमिलनाडु, नागपुर, चंडीगढ़, गुजरात में 13 फरवरी महाशिवरात्रि मनाई जाएगी। ऐसा इसलिए कि यहां 13 तारीख को ही चतुर्दशी तिथि संपूर्णरूप से निशीथव्यापनी रहेगी। पूर्वी भारत में जहां स्थानीय रात्रिमान के अनुसार निशीथकाल 14 फरवरी को रात 12 बजकर 47 मिनट पर समाप्त हो रहा है वहां 14 फरवरी को महाशिवरात्रि का व्रत किया जा सकता है। आप समय के विवरण के लिए तालिका देख सकते हैं  

महाशिवरात्रि क्यों कहते हैं?

पुरे साल में १२ शिवरात्रि होता है, शिवरात्रि हरेक महीने कृष्ण चतुर्दशी को होता है , जो कि माह का अंतिम दिन होता है माघ मास की कृष्ण चतुर्दशी, महाशिवरात्री के रूप में पुरे भारत वर्ष में मनाई जाती है। मंदिरों में इस दिन भगवान् शंकर की शादी का भी कार्यकर्म किया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार इसी दिन शंकर पार्वती का विवाह हुआ था पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिङ्ग ( जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है ) के उदय से हुआ। भगवान् शंकर को खुश करने के लिए पुरे दिन का व्रत रखा जाता है और मंदिरों में भगवान् शंकर की पूजा की जाती है और जलाभिशेक्क निसिथ काल में भगवान् शिव की साधना और पूजा की जाती है। इस दिन रात्रि जागरण करके भगवान् शंकर की पूजा करने का अत्यधिक महत्व है। एवं इस दिन पूरे साल में हुई गलतियों के लिए भगवान शंकर से क्षमा याचना की जाती है तथा आने वाले वर्ष में उन्नति एवं सदगुणों के विकास, मनोकामना की पूर्ति के लिए प्रार्थना की जाती है।

शिवरात्रि के दिन सबसे जो महत्वपूर्ण होता है वो है पंचाक्षरी मंत्र, (पंचक्षरी मंत्र मन्त्र की जानकारी नीचे दे रहे हैंमहाशिवरात्रि के दिन शिव भक्त जितना भगवान शिव के पंचक्षरी मंत्र का जप कर लेता है उतना ही उसके अंतकरण की शुद्धि होती जाती है और शिवभक्त अंतःकरण में विराजमान भगवान् शंकर के सबसे करीब होता है। भक्तों के दरिद्रता, रोग, दुख एवं शत्रुजनित पीड़ा एवं कष्टों का अंत हो जाता है एवं उसे परम आनंद कि प्राप्ति होती है। और भगवान भोले की कृपा भक्त पर होती है।

Shiva Panchakshari Stotram  (पंचाक्षरी मंत्र)

नमः शिवाय शिवाय नमः
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय
भस्मांगरागाय महेश्वराय
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय
तस्मैकाराय नमः शिवाय
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय
नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय
मंदार मुख्य बहुपुष्प सुपूजिताय
तस्मैकाराय नमः शिवाय
शिवाय गौरी वदनाब्ज बृंद
सूर्याय दक्षाध्वर नाशकाय
श्री नीलकंठाय वृषभध्वजाय
तस्मैशिकाराय नमः शिवाय
वशिष्ठ कुंभोद्भव गौतमार्य
मुनींद्र देवार्चित शेखराय
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय
तस्मैकाराय नमः शिवाय
यज्ञ स्वरूपाय जटाधराय
पिनाक हस्ताय सनातनाय
दिव्याय देवाय दिगंबराय
तस्मैकाराय नमः शिवाय
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिव सन्निधौ
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते

महाशिवरात्रि की कहानी

श्रीमद् भागवत में एक प्रसंग है कि एक बार देवताओं और दैत्यों ने मिल कर भगवान के निर्देशानुसार समुद्र मंथन की योजना बनाई ताकि अमृत प्राप्त किया जा सके। परंतु उस समुद्र मंथन के समय सबसे पहले हलाहल विष (कालकूट नामक विष) निकला था। वह विष इतना विषैला था कि उससे समस्त जगत भीषण ताप से पीड़ित हो गया था। देव-दैत्य बिना पिए उसको सूंघते ही बेसुध से हो गए। देवताओं की प्रार्थना पर और मानव के कल्याण के लिए उस हलाहल विष को भगवान् शंकर ने पिने  का निर्णय लिया।
उसके बाद अपने हाथों  में उस विष को लिया पी गए। किंतु उसको निगला नहीं और विष अपने गले में ही रोक लिया। जिसके प्रभाव से आपका गला नीला हो गया और  नीलकंठ कहलाए। भगवान् की इसी अलौकिक चेष्टा की याद में  श्री शिवरात्री मनाई जाती है।
महाशिवरात्रि अनुष्ठान
महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का अभिषेक अनेकों प्रकार से किया जाता है। जलाभिषेक : जल से और दुग्धाभिषेक : दूध से। भक्त शिव के मंदिरों में पारंपरिक शिवलिंग पूजा करने के लिए आते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं। और शिवलिंग पर चढाने के लिए धतूरे का फल, बेलपत्र, भांग, बेल, आंक का फूल, धतूरे का फूल लाते है, इसके अलावा इस दिन पुरानी मान्यता और शास्त्र के अनुसार, महाशिवरात्रि पूजा में छह वस्तुओं को अवश्य शामिल करना चाहिए
  • शिव लिंग का पानी, दूध और शहद के साथ अभिषेक। बेर या बेल के पत्ते जो आत्मा की शुद्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं;
  • सिंदूर का पेस्ट स्नान के बाद शिव लिंग को लगाया जाता है। यह पुण्य का प्रतिनिधित्व करता है;
  • फल, जो दीर्घायु और इच्छाओं की संतुष्टि को दर्शाते हैं;
  • जलती धूप, धन, उपज (अनाज);
  • दीपक जो ज्ञान की प्राप्ति के लिए अनुकूल है;
  • और पान के पत्ते जो सांसारिक सुखों के साथ संतोष अंकन करते हैं।
इस दिन आप पूरी श्रधा के साथ भगवान् भोले की पूजा अर्चना करें, और शिवरात्रि का व्रत रखें।  इस महाशिवरात्रि नर्मदेश्वर शिवलिंग पर अभिषेक करें। आपकी मनोकामना पूर्ण होगी।बम बम भोलेजय शिवशंकर।
भगवान शिव इस महाशिवरात्रि पर उनके आशीर्वाद बांटने के लिए तैयार हैंइसलिए उनके आशीर्वाद का आनंद लें और महाशिवरात्रि दोनों दिन 13 और 14 फरवरी 2018 को मनाएं
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Acharya Vikas Kumar Malhotra
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