Saturday 26 September 2015

HAPPY ANANT CHATURDASHI 2015




Happy Anant Chaturdashi 2015

श्रद्धालुजनों को संकटों से रक्षा करने वाला अनन्तसूत्र बंधन का त्यौहार अनंत चतुर्दशी हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल अनंत चतुर्दशी का पर्व 27 September 2015 को मनाया जाएगा।

अनंत चतुर्दशी व्रत कथा (Ananat Chaturdashi Vrat Katha in Hindi)

Katha No. 1

भविष्य पुराण के अनुसार जुए में पांडव राजपाट हार कर जब जंगल में भटक रहे थे और कई प्रकार के कष्टों को झेल रहे थे तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें अनन्त चतुर्दशी का व्रत करने की सलाह दी और उसी व्रत के प्रभाव से पांडव सभी कष्टों से मुक्त हुए और महाभारत के युद्ध में उन्हें विजयी की प्राप्ति हुई थी।

युधिष्ठिर ने पूछा कि अनंत भगवान कौन हैं इनके बारे में बताएं। इसके उत्तर में श्री कृष्ण ने बताया कि यह भगवान विष्णु ही हैं। चतुर्मास में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर अनंत शयन में रहते हैं। अनंत भगवान ने वामन रूप धारण करके दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया था।

इनके ना तो आदि का पता है न अंत का इसलिए भी यह अनंत कहलाते हैं। इनकी पूजा से नश्चित ही आपके सारे कष्ट समाप्त हो जाएंगे। युधिष्ठिर ने परिवार सहित यह व्रत किया और पुनःराज्यलक्ष्मी ने उन पर कृपा की। युधिष्ठिर को अपना खोया हुआ राज-पाट फिर से मिल गया।

अनंत व्रत कथा

Katha No. 2

प्रचीन काल में सुमन्तु नाम के एक वशिष्ठ गोत्रीय मुनि थे ! उनकी पत्नी का नाम दीक्षा था ! और उनकी पुत्री का नाम शीला था ! दीक्षा के मृत्यु के पश्चात् सुमन्तु मुनि ने करकश से विवाह कर लिया, विवाहोपरांत करकश शीला को बहुत परेसान करती थी ! लेकिन शीला अत्यंत सुशील थी ! सुमन्तु ने अपने पुत्री का विवाह कौंडिन्य मुनि के साथ कर दिया था !
सभी आरम्भ में साथ में ही रहते थे पर सौतेली माँ का व्यवहार देखकर कौंडिन्य मुनि वह आश्रम छोड़ कर चले गए ! जब आश्रम का परित्याग कर आगे बढ़े तो एक नदी के तट पर कौंडिन्य मुनि स्नान हेतु रुक गए !
कौंडिन्य मुनि स्नान कर रहे थे तभी कुछ स्त्रियों का झुण्ड उस नदी पर अन्नत पूजन करने को आया तो शीला उस झुण्ड में शामिल हो गई और उनसे उस व्रत के बारे में पूछा ! ये कौन सा व्रत हैं ? और इसे कैसे और क्यू करते हैं ?
तब वहाँ उपस्थित स्त्रियों ने उस व्रत की सारी महिमा का व्याख्यान किया !
उन्होंने कहा कि - यह अनंत चतुर्दशी का व्रत हैं ! और इस व्रत को करने से मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पातकों के कारण अनेक कष्ट पाता है। अनन्त-व्रत के सविधि पालन से पाप नष्ट होते हैं तथा सुख-शांति प्राप्त होती हैं !
इस व्रत को करने के लिए नित्य कर्म आदि से निवृत होकर, स्नान कर कुछ विशेष प्रसाद में घरगा और अनरसे का विशेष भोजन तैयार किया जाता हैं !
आधा भोजन ब्रह्मण को दान में दिया जाता हैं! यह पूजा किसी नदी या सरोवर के किनारे होती हैं ! इसलिए हम सब यहाँ आये है!
दूभ या दूर्वा से नाग का आकर बनाया जाता हैं जिसे बांस के टोकरी में रखकर लाते हैं! और फिर इस नाग शेष अवतार की फूल और अगरबत्ती आदि से पूजा की जाती हैं!
दीप धुप से पूजन के बाद एक सिल्क का सूत्र भगवान को चढाते हैं जो की पूजा के बाद कलाई या भुजा में पहन लिया जाता हैं ! यह सूत्र ही अनंत सूत्र हैं !
इस अनंत के सूत्र में १४ गाँठे होती हैं, और इसे कुमकुम से रंग कर स्त्रियाँ दाहिने हाथ में और पुरुष बाएं हाथ में पहनते हैं !
यह अनंत सूत्र बाँधने और पूजन से सुख सौभाग्य में वृद्धी के साथ दैवीय वैभव की प्राप्ति भी होती हैं !
यह सब विधि पूजन सुनने के बाद शीला भी उस व्रत को करने का संकल्प ले वह व्रत करती हैं और अनंत सूत्र को अपने बाहु में बांध लेती हैं !
शीला ने भाद्र पद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत भगवान् का व्रत किया और अनंत सूत्र अपने बांये हाथ में अनंत सूत्र को बाँध लिया !
भगवान् अंनत की कृपा से शीला और कौंडिन्य के घर में सभी प्रकार की सुख - समृद्धि आ गई ! उनका जीवन सुखमय हो गया !
एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के बाएं हाथ में बंधे अनन्त सूत्र पर पडी, जिसे देखकर वह भ्रमित हो गए और उन्होंने पूछा-क्या तुमने यह क्या बांधा हैं? शीला ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया - जी, यह अनंत भगवान का पवित्र सूत्र है। यह पूजन आरम्भ करने के बाद ही हमे यह वैभव और सुख प्राप्त हुआ हैं !
परन्तु परंतु ऐश्वर्य के मद में अंधे हो चुके कौण्डिन्य ने अपनी पत्नी की सही बात को भी गलत समझा ! उस वैभव का कारण उन्होंने अपने परिश्रम और बुद्धिमता को बताया ! और अनन्त सूत्र को जादू-मंतर वाला वशीकरण करने का डोरा समझा !
और दुर्भाग्यवश एक दिन कौंडिन्य मुनि ने क्रोध में आकर शीला के हाथ में बंधा अनंत सूत्र तोड़कर आग में फेंक दिया !
इससे उनकी सब धन और संपत्ति नष्ट हो गई और वे बहुत दुखी रहने लगे ! कौंडिन्य मुनि को अब भाष हो गया था कि वह सारा वैभव अनंत व्रत के प्रभाव से ही था !
उन्होंने तभी संकल्प किया कि वह अपने इस गलत कृत का प्रायश्चित करेंगे और तब तक ताप करेंगे जब तक कि भगवान अनंत स्वयं उन्हें दर्शन न दे दे !
एक दिन दुखी होकर कौंडिन्य मुनि वन में चले गए ! वन में उन्होंने देखा कि एक आम का वृक्ष पके हुए आम से भरा पीडीए हैं पर कोई भी उसके फल को नहीं खा रहा हैं ! तब पास आकर देखा तो उस पुरे वृक्ष पर कीड़े लगे थे ! उस वृक्ष से कौंडिन्य मुनि ने पूछा की आपने अनंत भगवान् को देखा है ?
लेकिन उत्तर ऋणात्मक ही मिला !
आगे जाने पर उन्होंने देखा कि एक गाय और उसके बछड़े को, आगे और जाने पर एक बैल मिला सब एक हरे भरे मैदान में थे पर कोई भी घास नहीं खा रहा था ! फिर आगे जाने पर दो नदियों को देखा जो एक दूसरे से एक किनारे पर मिल रही थी ! पर उसके पानी को भी कोई नहीं ले रहा था ! इस प्रकार सभी से उन लता, वृक्ष, जीव - जंतुओं, से अनंत भगवान का पता पूछने लगे ! पर सब ने मन कर दिया तब वह निराश हो अपने जीवन का अंत करने की सोच आगे बड़े तो दयानिधि भगवान् अनंत वृद्ध ब्राह्मण के रूप में कौंडिन्य मुनि को दर्शन दिया और अनन्त व्रत करने को कहा !
भगवान ने मुनि से कहा-तुमने जो अनन्त सूत्र का तिरस्कार किया है, यह सब उसी का फल है। इसके प्रायश्चित हेतु तुम चौदह वर्ष तक निरंतर अनन्त-व्रत का पालन करो। इस व्रत का अनुष्ठान पूरा हो जाने पर तुम्हारी नष्ट हुई सम्पत्ति तुम्हें पुन:प्राप्त हो जाएगी और तुम पूर्ववत् सुखी-समृद्ध हो जाओगे। कौण्डिन्यमुनिने इस आज्ञा को सहर्ष स्वीकार कर लिया।
शीला और कौंडिन्य मुनि ने अनंत व्रत को किया और वे पुनह सुख पूर्वक रहने लगे ! इस् व्रत को करने से मुक्ति और भुक्ति दोनों की उपलब्धि होती हैं !
अनन्त-व्रत के सविधि पालन से पाप नष्ट होते हैं तथा सुख-शांति प्राप्त होती है। कौण्डिन्यमुनि ने चौदह वर्ष तक अनन्त-व्रत का नियमपूर्वक पालन करके खोई हुई समृद्धि को पुन:प्राप्त कर लिया।

अनंत चतुर्दशी व्रत विधि (Anant Chaturdashi Puja Vidhi in Hindi)

इस दिन व्रती को प्रातः काल स्नान कर कलश की स्थापना कर कलश पर अष्टदल कमल के समान बने बर्तन में कुश से निर्मित अनंत की स्थापना करना चाहिए और फिर शास्त्रानुसार भगवान अनंत के साथ- साथ भगवान विष्णु और विघ्नहर्ता गणेश जी का आवाहन कर उनकी पूजा करनी चाहिए।

अनंत चतुर्दशी का पर्व हिंदू हिन्दुओं के साथ- साथ जैन समाज के लिए भी महत्त्वपूर्ण और कामनाओं से भरा है। जैन धर्म के दशलक्षण पर्व का इस दिन समापन होता है। जैन अनुयायी श्रीजी की शोभायात्रा निकालते हैं और भगवान का जलाभिषेक करते हैं।

This day is also associated with Visarjan of Ganesh Ji. On this day the idol of Ganapati is immersed in river, lake or sea which is also known as Ganapati Visarjan. This festival is celebrated mainly in Andhra Pradesh, Maharashtra, Karnataka and Gujarat in India. The festival falls on the fourteenth day of Bhadrapad month and is observed on the tenth day after Ganesh Chaturthi. Both males and females wear a sacred thread of Anant Chaudas round the neck, arm or sometimes tie it at the main entrance of their homes. It is believed that by doing this Lord Ganesh will bless them with prosperity, happiness and wealth while leaving the house and will take away all their sorrows and miseries.

Worship Lord Ganesha and Lord Vishnu today to get good health, wealth and success.


Acharya Vikas Malhotra
Astrologer, Numerologist and Spiritual Healer
{MBA, LLB, FCS, MA (Public Admn), FIII, JYOTISH VISHARAD}



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